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Sunday, February 19, 2012

विद्यालयों के पास बिकती है मौत, बेच रहे मजबूर बच्चे!


शरीर पर गंदे, मैले कुचैले कपड़े, ठंड और उचित देखभाल न होने से हाथ पैर और चेहरों के चमड़े फटे-फटे, उम्र बमुश्किल 12-13 साल, आँखे किसी खरीदार के इंतजार में। यह किसी एक की कहानी नहीं है ऐसे कई चेहरे आपको सरकारी स्कूल के बाहर मिल जायेंगे, जिनकी ज़िन्दगी गुटखा, पान मसाला और तम्बाकू बेचकर चलती है। एक तरफ़ इन्हें बेचना उन बच्चों की मज़बूरी है तो दूसरी तरफ़  पूरे समाज में धीमा जहर फ़ैल रहा है। जिस जगह  पर कल्पनाएँ  हकीकत का रूप लेती हैं उसी जगह पर मौत का सामान बेचा जाना हमें सकते में डालता है तो तस्वीर का दूसरा पहलू हमें सोचने पर मजबूर करता है। सरकार और प्रशासन सबकुछ जानते हुए भी चुप है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ बच्चे ही ऐसा करने को मजबूर हैं, स्कूल-कॉलेज से चंद कदम की दुरी पर ही ऐसी कई दुकाने सजी रहती हैं। जिनमे पान-गुटखा से लेकर शराब की दुकानें भी रहती हैं। इसका दूसरा सबसे बड़ा कारण यह है तम्बाकू उत्पादों का सबसे बड़ा खरीदार स्कूल कॉलेज के छात्र हैं। सवाल है क्या ‘धूम्रपान करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’ तम्बाकू उत्पादों पर लिखी इस वैधानिक चेतावनी को ही हम अपने कर्तव्य की इतिश्री मान चुके हैं?
जबकि विज्ञापन पर निषेध व रेग्यूलेशन ऑफ ट्रेड एण्ड कॉमर्स उत्पादन आपूर्ति और वितरण एक्ट 2003 की धारा 6 के अनुसार तम्बाकू की बिक्री किसी अवयस्क द्वारा किये जाने पर प्रतिबन्ध  है। तथा शिक्षण संस्थानों के 100 मीटर की परिधि में तम्बाकू उत्पादों की बिक्री निषेध है। फिर भी ऐसा किया जाना और प्रशासनिक स्तर पर कोई कार्रवाई न होना हास्यास्पद है।
आँकड़ों पर अगर गौर किया जाए तो जो खौफनाक हकीकत सामने आती है उसे देखकर स्थिति की गंभीरता का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। 2000 में इंडिया-बिहार ग्लोबल यूथ टोबैको सर्वे में यह बात स्पष्ट तौर पर सामने आई कि 59 प्रतिशत प्रतिशत बच्चे किसी भी रूप में तम्बाकू उत्पाद का उपयोग कर रहे हैं। 14 प्रतिशत बच्चे सिगरेट पीते हैं, जबकि 46 प्रतिशत बच्चे तम्बाकू का दूसरे रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। वहीँ स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक देश में 10 वर्ष तक की उम्र के करीब 37 प्रतिशत प्रतिशत बच्चे स्मोकिंग करते हैं। जबकि स्कूल कॉलेज के 50 प्रतिशत से अधक छात्र तम्बाकू सेवन करते हैं। ज़ाहिर है ये आँकड़े हमने नहीं बनाए हैं फिर भी इसे रोकने और कानून का कड़ाई से पालन करने की दिशा में कोई प्रयास क्यों नहीं हो रहे हैं? बड़ा सवाल यही है।
क्रिकेटर युवराज सिंह को जब कैंसर की खबर आई तो हममे से हर कोई स्तब्ध था। युवराज की बीमारी तो फिर भी गंभीर नहीं थी लेकिन इसी कैंसर से कितने लोग हर साल काल के गाल में चले जाते है, इसका कोई स्पष्ट आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। फिर भी इसके जड़ को तलाशने की चर्चा कहीं नहीं  दिखी। सवाल यह भी है कि एक तरफ़ सरकार तम्बाकू मुक्त प्रदेश होने का सपना देखे और दूसरी तरफ धड़ल्ले से शराब दुकानों को लाइसेंस दिया जाए, तम्बाकू उत्पादों से राजस्व भी मिले और लोग तम्बाकू उत्पाद का उपयोग भी न करे ये दोनों एक साथ आखिर हो कैसे सकता है? जहाँ बाजार और उसके पैरोकार आड़े आते हैं वहाँ सरोकार की बात करना बेवकूफी लगती है। फिर भी इस धीमे जहर से समाज जिस अन्धकार की ओर बढ़ रहा हैं समय रहते उसपर कार्रवाई नहीं की गई तो फिर अपने आप को कोसने के अलावा कुछ भी नहीं बचेगा।
गिरिजेश कुमार

5 comments:

  1. sargarbhitor srahniya pryas hae .bdhai par kya isase door karna kya asanmbhav hae?

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  2. संगीता जी धन्यवाद! सवाल है क्या रोक पाना संभव है? क्यों नहीं संभव है? बिल्कुल है ज़रूरत वहीँ आती है इच्छाशक्ति की जो कहीं दिखती नहीं। प्रशासनिक स्तर पर कार्रवाई कर भी इसे रोका जा सकता है। कानून तो बन चुका है परन्तु उसका पालन नहीं हो रहा।

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  3. बहुत शर्मनाक स्थिति है यह इसका खामियाजा भी हमें ही भुगतना होगा.

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  4. सावल भी आपने ही किया और जवाब भी आपने खुद ही दे दीया... :)
    "धूम्रपान करना स्वस्थ के लिए हानिकारक है" तंबाकू उत्पादों पर लिखी इस वेधानिक चेतावनी को ही हम,अपने कर्तव्य कि इतिश्री मान चुके हैं।
    इसलिए होने वाले नुकसान के जिम्मेदार भी हम खुद ही हैं और जैसा अनीता जी ने कहा उनकी बात से भी सहमत हूँ।

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  5. तंबाकू को लेकर देश में खतरनाक स्थिति है.

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